Temple sculpture , Bronze and indo- Islamic Architecture
6 -13 वी शताब्दी
मंदिरो का देश भारत
देवी देवताओं के मूर्त रूप की पूजा हेतू जो भवन बनाए गए वो मंदिर कहलाते है।
देवी देवताओं की मूर्तियों का अध्ययन मूर्तिविद्या (iconography) कहलाता है।
इसे प्रतिमाविद्या भी कहते हैं।
Introdection to Temple Sculpture
6 - 7 वी शताब्दी में पत्थर माध्यम को अपनाया और गुहा मंदिरो का निमार्ण चटटानो को काटकर किया गया।
(रॉक टेंपल - रथ मंदिर - मंदिर।)
मंदिर निर्माण की 2 शैली
गुहा - चटटान / पहाड़ी को काटकर बनाया मंदिर ( गुफा)
संरचनात्मक - पत्थर/ ईंटो से निर्मित
(एक ही चटटान को काटकर भी मंदिर बने।)
गुप्त कालीन मंदिर काफी छोटे होते थे।
प्राचीन काल में 3 type के मंदिर
संधर - जिसमे प्रदक्षिना पथ हो।
निरंधर - जिसमे प्रदक्षिणा पथ ना हो
सर्वोत्रोभद्र जिसमे चारो तरफ से प्रवेश कर सके
हिन्दू मंदिर के मुख्य भाग
जगती - चबूतरा जिसपर मंदिर का निर्माण होता है।
गर्भ गृह - मुख्य कक्ष जहा देवी देवताओं की मूर्ति होती है।
मंडप - गर्भगृह के सामने एक छोटा स्तंभ युक्त मंडप।
शिखर - गर्भगृह के ऊपर अधिक ऊंचा और मंडप के ऊपर थोड़ा कम ऊंचा शिखर । शिखर के शीर्ष को पताका, आमलक, कलश से अल्नकृत
प्रवेश द्वार - द्वारपालों,गंगा यमुना, यक्ष यक्षिणी की मूर्तिया।
मंदिरो की श्रेणी
नागर शैली
उत्तर भारत की शैली
हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत तक।
संरचनात्मक मंदिर स्थापत्य की एक शैली
गंगा यमुना जैसी देवियों की मूर्ति को गर्भ गृह के बाहर रखा जाता था।
सम्पूर्ण मंदिर एक चबूतरे पर बनाया जाता था।
मंदिर में घुमावदार गुंबद होता था जिसे शिखर कहा जाता था। इसे अनुप्रास्थिक भी कह जाता था।
ये मंदिर आधार से शिखर तक चतुस्कोणीय होते थे।
पहले 1 शिखर होता था आगे चलकर बहुत से शिखर होने लगे।
गर्भ गृह हमेशा सबसे ऊंचे शिखर के नीचे बनाया जाता था।
मंदिर के अलग लग भागो को अलग अलग नाम से जाना जाता है।
शिखर (रेखा प्रसाद ) एक शिखर
फमसाना भवन - अधिक चौड़े और ऊंचाई में कुछ छोटे।इनकी छते एसी शिलाओं की बनी होती थी जो भवन के केंद्र भाग से ऊपर एक निश्चित बिंदु तक मिली होती थी
वल्लभी - वर्गाकार भवन।
इन्हें (wagon vaulted building) शकटाकार भवन कहते थे।
(बांस या लकड़ी के बने छकड़े की तरह होता था।)
मेहराबदार छतो में शिखर का निर्माण।
नागर मंदिरो की उपशेली -पाल, ओडिशा, खजुराहो, सोलंकी
उप शैली - पल्लव, चोल, पाण्डेय, विजयनगर
कृष्णा नदी से लेकर कन्याकुमारी तक।
द्रविड शैली के मंदिर बहुमंजिला होते है।
मंदिर के मुख्य द्वार(गोपुरम) पर द्वारपालो को रखा जाता था।
चारदीवारी से घिरा होता था इसके बीच में प्रवेश द्वार जिस3 गोपुरम कहा जाता था।
मंदिर गुंबद का रूप जिसे विमान कहा जाता था।
यह सीढ़ी दार पिरामिड की तरह ज्यामिति रूप में बना होता है।
मंदिर के अहाते में अक्सर जलाशय पर जाते है।
मुख्य मंदिर जिसमे गर्भ गृह बना होता था वो सबसे छोटा होता था।
पल्लव काल में पनपी , चोल काल में शीर्ष पर,विजयनगर में हास
तांजोर का व्रहदेश्वर मंदिर को यूनेस्को में शामिल।
द्रविड़ के अंतर्गत ही नायक शैली का विकास हुआ (मीनाक्षी मंदिर, रंगनाथ मंदिर, रामेश्वरम मंदिर)
चालुक्य शैली भी कहते है।
अपशेली - राष्ट्रकूट, चालुक्य, होयसेल, काकतीय।
इन मंदिरो का आकर आधार से शिखर तक वार्ताकार या अर्धगोलाकर होता है
बेसर शैली का उदाहरण है- वृंदावन का वैष्णव मंदिर जिसमें गोपुरम बनाया गया है।
Also called किरात अर्जुन
पल्लव काल
7th century
Stone (ग्रेनाइट)
महाबलीपुरम तमिलनाडु
( जिसे मामल्लापुरम भी कहा जाता है)
चट्टानों को काटकर कई मंदिर और रथों के समूह बनवाए, जिन्हें पंच पांडव रथ के नाम से जाना जाता है। इन्हें स्वतंत्र रूप से खड़े मोनोलिथ से उकेरा गया है। स्वर्ग से गंगा को नीचे लाने के लिए भागीरथ की तपस्या की कहानी इस पैनल का विषय है।
यह पहाड़ी पर दो विशाल शिलाखंडों से बना है, जो दो संकीर्ण ऊर्ध्वाधर दरारों से अलग हैं। गंगा की दिव्य धारा को ऊर्ध्वाधर दरारों के माध्यम से नीचे की ओर बहते हुए दर्शाया गया है।
एक विशालकाय नागराजा अपनी रानी के साथ बाहर आता है।
दोनों ओर से देवता, राक्षस, मनुष्य और जानवर सभी एकत्र हुए हैं। बायीं चोटी के पास भगीरथ एक पैर पर खड़े हैं। उन्होंने दोनों हाथों को अपने सिर के ऊपर एक दूसरे से जोड़कर रखा हुआ है. चार भुजाओं वाले भगवान शिव अपने गणों के साथ, अपने निचले बाएं हाथ के सामने वरदमुद्रा में खड़े हैं।
बाएं शिलाखंड के निचले स्तर पर, योगियों का एक समूह एक पल्लव मंदिर के आसपास इकट्ठा हुआ है . तीन योगी योग मुद्रा में बैठे हैं।
दाहिनी ओर के शिलाखंड पर एक हाथी परिवार, एक विशाल बैल, एक गाय को उसके बछड़ों के साथ चित्रित किया गया है।
हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत तक।
संरचनात्मक मंदिर स्थापत्य की एक शैली
गंगा यमुना जैसी देवियों की मूर्ति को गर्भ गृह के बाहर रखा जाता था।
सम्पूर्ण मंदिर एक चबूतरे पर बनाया जाता था।
मंदिर में घुमावदार गुंबद होता था जिसे शिखर कहा जाता था। इसे अनुप्रास्थिक भी कह जाता था।
ये मंदिर आधार से शिखर तक चतुस्कोणीय होते थे।
पहले 1 शिखर होता था आगे चलकर बहुत से शिखर होने लगे।
गर्भ गृह हमेशा सबसे ऊंचे शिखर के नीचे बनाया जाता था।
मंदिर के अलग लग भागो को अलग अलग नाम से जाना जाता है।
शिखर (रेखा प्रसाद ) एक शिखर
फमसाना भवन - अधिक चौड़े और ऊंचाई में कुछ छोटे।इनकी छते एसी शिलाओं की बनी होती थी जो भवन के केंद्र भाग से ऊपर एक निश्चित बिंदु तक मिली होती थी
वल्लभी - वर्गाकार भवन।
इन्हें (wagon vaulted building) शकटाकार भवन कहते थे।
(बांस या लकड़ी के बने छकड़े की तरह होता था।)
मेहराबदार छतो में शिखर का निर्माण।
नागर मंदिरो की उपशेली -पाल, ओडिशा, खजुराहो, सोलंकी
द्रविड़ शैली
उप शैली - पल्लव, चोल, पाण्डेय, विजयनगर
कृष्णा नदी से लेकर कन्याकुमारी तक।
द्रविड शैली के मंदिर बहुमंजिला होते है।
मंदिर के मुख्य द्वार(गोपुरम) पर द्वारपालो को रखा जाता था।
चारदीवारी से घिरा होता था इसके बीच में प्रवेश द्वार जिस3 गोपुरम कहा जाता था।
मंदिर गुंबद का रूप जिसे विमान कहा जाता था।
यह सीढ़ी दार पिरामिड की तरह ज्यामिति रूप में बना होता है।
मंदिर के अहाते में अक्सर जलाशय पर जाते है।
मुख्य मंदिर जिसमे गर्भ गृह बना होता था वो सबसे छोटा होता था।
पल्लव काल में पनपी , चोल काल में शीर्ष पर,विजयनगर में हास
तांजोर का व्रहदेश्वर मंदिर को यूनेस्को में शामिल।
द्रविड़ के अंतर्गत ही नायक शैली का विकास हुआ (मीनाक्षी मंदिर, रंगनाथ मंदिर, रामेश्वरम मंदिर)
बेसर शैली
नागर और द्रविड़ शैली के मिले जुले रूप को बेसार कहते है।
चालुक्य शैली भी कहते है।
अपशेली - राष्ट्रकूट, चालुक्य, होयसेल, काकतीय।
इन मंदिरो का आकर आधार से शिखर तक वार्ताकार या अर्धगोलाकर होता है
बेसर शैली का उदाहरण है- वृंदावन का वैष्णव मंदिर जिसमें गोपुरम बनाया गया है।
Descent of Ganga
पल्लव काल
7th century
Stone (ग्रेनाइट)
महाबलीपुरम तमिलनाडु
( जिसे मामल्लापुरम भी कहा जाता है)
चट्टानों को काटकर कई मंदिर और रथों के समूह बनवाए, जिन्हें पंच पांडव रथ के नाम से जाना जाता है। इन्हें स्वतंत्र रूप से खड़े मोनोलिथ से उकेरा गया है। स्वर्ग से गंगा को नीचे लाने के लिए भागीरथ की तपस्या की कहानी इस पैनल का विषय है।
यह पहाड़ी पर दो विशाल शिलाखंडों से बना है, जो दो संकीर्ण ऊर्ध्वाधर दरारों से अलग हैं। गंगा की दिव्य धारा को ऊर्ध्वाधर दरारों के माध्यम से नीचे की ओर बहते हुए दर्शाया गया है।
एक विशालकाय नागराजा अपनी रानी के साथ बाहर आता है।
दोनों ओर से देवता, राक्षस, मनुष्य और जानवर सभी एकत्र हुए हैं। बायीं चोटी के पास भगीरथ एक पैर पर खड़े हैं। उन्होंने दोनों हाथों को अपने सिर के ऊपर एक दूसरे से जोड़कर रखा हुआ है. चार भुजाओं वाले भगवान शिव अपने गणों के साथ, अपने निचले बाएं हाथ के सामने वरदमुद्रा में खड़े हैं।
बाएं शिलाखंड के निचले स्तर पर, योगियों का एक समूह एक पल्लव मंदिर के आसपास इकट्ठा हुआ है . तीन योगी योग मुद्रा में बैठे हैं।
दाहिनी ओर के शिलाखंड पर एक हाथी परिवार, एक विशाल बैल, एक गाय को उसके बछड़ों के साथ चित्रित किया गया है।