Introduction to art during Maurya period
✍ 325-184 B.C (323-187 B.C)
✍ स्थापना - चंद्रगुप्त मौर्य (322 ई. पु -29✍8)
✍ राजधानी - पाटलीपुत्र ( वर्तमान पटना)
✍ विस्तार - पूर्व में मगध राज्य में गंगा नदी के मैदानो से शुरू (वर्तमान बंगाल बिहार)
✍ चंदगुप्त के मंत्री कौटिल्य (चाणक्य)
✍ वास्तविक नाम विष्णु गुप्त (पुस्तक- अर्थशास्त्र)
✍ अंतिम शासक- बृहद्रृथ (पुष्यमित्र शुंग के द्वारा बृहद्रृथ की हत्या की गई थी)
✍ मौर्य साम्राज्य 4 भागो मे बांटा गया था
✍ पूर्वी भाग - तोसाली
✍ दक्षिणी भाग - सुवर्ण गिरी
✍ उतरी भाग - तकक्षिला
✍ पश्चिमी भाग - उज्जैन
मुद्रा - पण
✍ मौर्य प्रशासन - प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गांव और उसका प्रधान ग्रामिक कहलाता था। कौटिल्य के अनुसार 7 विभाग बनाए -राजा, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोष, सेना ,मित्र।
✍ बिंदुसार - यूनानी शासक एंटीयोकस प्रथम से सुखी अंजीर, शराब,और एक दार्शनिक की मांग की थी।
✍ इनके दरबार में एंटीयोक्स प्रथम (सीरिया में राजा) ने डाइमेकस राजदूत भेजा।
✍ राजा टोलमि द्वितीय के काल से डाईनोसियस बिंदुसार के दरबार में आए।
✍ अशोक ( देवनाप्रिया , प्रियदर्शी )
✍ मौर्य कालीन वास्तु कला - पाटलिपुत्र का मौर्य राज प्रसाद बराबर और नागार्जुन की पहाड़ियों की गुफाएं
✍ अशोक के शिला स्तंभ
✍ ईंटों से निर्मित बौद्ध स्तूप
✍ मौर्य कालीन कला - चीनी यात्री फाह्यान ने मौर्य काल के महलों को ईश्वर प्रदत्त स्मारक कहा।
✍ अशोक स्तंभ राज्य के प्रतीक रूप में।(अशोक के शिलास्तंबो को अशोक के लाट भी कहा जाता था)
✍ आमतौर पर चुनार के बलुआ पत्थर से बने।
✍ मौर्यकालीन पत्थर कलाकृतियां - बोधगया का वज्रासन धोली चट्टान का हाथी, वेसनगर के स्तंभ शीर्ष ,कालसी शीला प्रज्ञापन का हाथी।
✍ मौर्य कालीन स्तंभ चट्टानों से कटे हुए अथार्थ एक विशाल पत्थर से बने हुए होते थे।
✍ एकमेंनियन स्तंभ अनेक टुकड़ों को जोड़ कर बनाए जाते थे।
✍ शीर्षाकृतियो युक्त स्तंभ - की चोटी पर सांड, शेर, हाथी जैसे जानवरों की आकृति उत्कीर्ण की होती थी।
✍ वेदियों को सुंदर कमल के फूलों से सजाया जाता था ।
✍ जैसे - बसाढ़/बसराह - बखीरा (बिहार) (सिंह शीर्ष युक्त)
लोरिया नंदनगढ - सिंह शीर्ष युक्त
रूम्बीनिदेई - अशव शीर्ष युक्त
रामपुरवा स्तंभ , संकीना, सारनाथ
✍ मौर्य काल में काष्ठ के स्थान पर पत्थर और ईंटो का प्रयोग अधिक हुआ था ।
मौर्य काल में मूर्तियों आदि पर चमकदार पॉलिश की जाती थी ।मौर्य काल की सबसे बड़ी विशेषता धर्म का प्रचार था ।इस काल में बौद्ध और जैन धर्म के प्रचार प्रसार में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु अनेक स्थानों पर स्तूपो का निर्माण करवाया।