Bronze


3. Introduction to Indian Bronze
टेराकोटा,stone,metal sculpture
सर्वप्रथम उदाहरण - dancing girl ( मोहनजोद्दो )
भारत की उन्नति और जीवंतता का प्रमाण।
( इसके अलावा दक्षिण भारत से प्राप्त मातृ देवी की प्रतिमा) धातु मूर्ति
कांस्य के बर्तन भी मिले है।

समय - 2nd cen. - 16th cen.

2-3 cen के कांस्य मूर्ति शिल्प अकोता प्रांत से प्राप्त
7वी सदी में हर्षवर्धन के समय सोने,चांदी,चंदन की बुद्ध प्रतिमा
10 वी शताब्दी में चोल वंशीय मूर्तिकला
( नटराज)

Terracota - Indus valley civilization
Stone - बौद्ध धर्म और गुप्त काल में
बुद्ध की तांबे से निर्मित प्रतिमा बिहार सुल्तानपुर से प्राप्त। 5 वी सदी गुप्त काल की ।उसे झीने वस्त्रों की सलवटे बनाई है जो कोमलता का आभास देती है।

Metal - चोल काल में
कांस्य प्रतिमा ( बौद्ध,जैन, हिंदू
Metal - casting process, bartan
कांस्य एक धातु मिश्र धातु है जिसमें तांबा और टिन की प्राथमिक संरचना होती है।

प्रक्रिया
  1. Solid casting
  2. Hollow casting
Solid Casting


Raw meterial - beeswax
वैक्स से मॉडल बनाया जाता है।
उस मॉडल को clay (मिट्टी )से कवर किया जाता हैं
और clay को पूरी तरह सुखाया जाता है।
जब मिट्टी का मॉडल पूरी तरह सुख जाता है फिर इसे गर्म किया जाता है।
जिससे wax पिघल सके ।

Malted wax को एक hole (छिद्र)से बाहर निकाल दिया जाता है।
अब उसमे पिघला हुआ metal डाला जाता है।
सेट होने पर clay modal को तोड़ दिया जाता है।
Matel मॉडल को साफ करके finishing दी जाती है और details add की जाती है।
सम्पूर्ण प्रक्रिया के बाद उस पर आवश्यकता अनुसार polish किया जाता है।

Hollow Casting


1st layer - सबसे पहले Clay से model बनाते है।
2nd layer - फिर उसे wax cover कर देगे
3rd layer - Wax को मिट्टी से कवर कर देगे
अब इसे गर्म कर देगे जिससे wax पिघल जाए।
पिघली मोम को बाहर निकाल देते है
और उसमे धातु डाल डालेंगे
धातु set होने पर mold को हटा देते है।
उसकी सफाई करके उसमे finishing दे दी जाती हैं
और polish की जाती है।

( 1900 और 1200 डिग्री सेल्सियस के बीच बहुत उच्च तापमान तक गर्म किया जाता है। प्रत्येक ढलाई उस तापमान को निर्धारित करती है जिस पर कांस्य डाला जाता है। )

Solid cast are made for temple sculpture and
hollow cast are made up for clay is use to make decorative pieces



4 . Study of South Indian Bronze

नटराज





शिव का नृत्य ब्रह्मांडीय दुनिया के अंत से जुड़ा है।
नटराज का अर्थ है 'नृत्य का भगवान'। (नटो का राजा)
12 वी शताब्दी A.D
चोल काल
तंजावुर जिला, तमिलनाडु

भारतीय नृत्य की सुंदरता(beauty )गति,संतुलन( balance), लय (rhytham) का प्रतिरूप ।
सम्पूर्ण प्रतिमा lotus स्तंभ/आधार (pedestal) पर बनी है।
शिव अपने दाहिने पैर पर संतुलन बनाते हुए नजर आ रहे हैं।
उनका बायां हाथ गज हस्त मुद्रा में है (भक्त के मन से तिरोभाव या भ्रम को दूर करने का चित्रण)।
चार भुजाएँ फैली हुई हैं।
मुख्य दाहिना हाथ अभयहस्ता मुद्रा में है।
ऊपरी दाहिने हाथ में डमरू (उनका पसंदीदा संगीत वाद्ययंत्र - लय बनाए रखने के लिए एक ताल वाद्य यंत्र) है।
ऊपरी बाएँ हाथ में ज्वाला है।
बायां पैर भुजंगत्रसिता मुद्रा में ऊपर उठा हुआ है।
दाहिने पैर अपस्मार (बौना राक्षस (विस्मृति या अज्ञान का राक्षस) को दबा रहा है।
पूरी नृत्य प्रतिमा ज्वाला माला या आग की माला से घिरी हुई है।
शिव की जटाएं ज्वाला माला को छूती हुई दोनों तरफ उड़ती हैं
मस्तक पर गंगा
Skull on head - मृत्यु पर विजय
भुजा, पैर के पास सांप
Collection - national museum new delhi

Devi Uma


12th century A.D
Chola period
मूर्ति की लंबाई 52 सेंटीमीटर है.

देवी पार्वती या उमा माता को दक्षिण भारत में खड़ा दिखाया जाता है.
इन्हें उमा, गौरी, पार्वती और कई अन्य के विभिन्न प्रतीकात्मक रूपों में चित्रित किया गया है।
देवी की तीन-मुड़ी हुई "त्रिभंगा" मुद्रा

देवी (उमा) की मूर्ति खड़ी मुद्रा में जिन्हे गहनों से सुसज्जित दिखाया गया है देवी पार्वती एक राजसी ऊंचे मुकुट से सुशोभित हैं जो उनके चेहरे से निकलने वाली महिमा को उजागर करता है। वह एकावली पहनती है - एक एकल-तार वाला हार, बाजूबंद और चूड़ियाँ और उसके धड़ पर एक मोटा यज्ञोपवीत है। देवी की धोती को धारण करने वाले करधनी में अलंकरण की भव्यता और सुंदरता है और इसे रत्नजड़ित जंजीरों और मकर रूपांकनों की एक श्रृंखला से सजाया गया है जो इस उमा कांस्य प्रतिमा के निचले आधे हिस्से में विस्तार जोड़ते हैं।

कांस्य की सतह पर पॉलिश
बायां हाथ लोलहस्थ मुद्रा में उनकी तरफ है, और दाहिने हाथ से एक विशिष्ट मुद्रा दिखती (कटाखस्थ मुद्रा) है, जिसका अर्थ है हमेशा खिलने वाली देवी शिवकामी को चढ़ाए गए पुष्प अर्पित करें।
यह एक ठोस मूर्ति है और इसे चोल काल के दौरान कांस्य में ढाला गया था। यह मूर्ति स्त्री सौन्दर्य , विशेषताओं को उत्कृष्ट ढंग से दर्शाती है। इसने बहुत कम आभूषण पहने हैं जो इसकी मूल संरचना को सुरक्षित रखते हैं। इसकी सबसे उल्लेखनीय विशेषताएं आनुपातिक रूप से डिज़ाइन किए गए चौड़े कंधे, गोल स्तन और संकीर्ण कमर हैं। इसके सिर पर विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया मुकुट संरचना में सुंदरता जोड़ता है।

इसके चेहरे पर दैवीय गरिमा और मासूमियत की जीवंत छाप है।
राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली
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