Rajasthani and Pahari School of Miniature Painting
16th century to 19th century A.D
राजस्थानी शैली
origan amd development :- 15वी सदी भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक पुनरुत्थान की कही जाती है।
राजस्थानी शैली की खोज dr. आनन्द कुमार स्वामी (पहले राजपूत शैली कहा बाद में राजस्थान)
कर्नल टॉड ने राजस्थान शब्द का प्रयोग अपनी पुस्तक ' एनल्स एंड एंटीक्यूटीज of राजस्थान में किया ।
राजपूत चित्र शैली का काल 16 - 19 वी शताब्दी तक
शैली (school) मेवाड़, बीकानेर, बूंदी, जोधपुर, किशनगढ,जयपुर
Main Features of Rajasthani School
चित्रों का विषय प्रेम रहा है। नारी का चित्रण विविध रूपों में और बारिकता से।
(प्रेषित पतीका, खंडिता, वासक सज्जा, अभिसारिका, आगतपतीका)
श्रृंगार, संयोग, वियोग, क्रीड़ा आदि विषय।
नायक के स्थान पर कही कही कृष्ण का चित्रण
15वी शताब्दी में गीत गोविंद, मदभागवत, आदि के आधार पर कृष्ण भक्ति के चित्र बने। जैसे - रास लीला, चिर हरण, नौका विहार, बंसी वादन, कालिया दमन, गोवर्धन धारण, कृष्ण राम
एतिहासिक और दरबारी चित्र भी बने जैसे शिकार,जीवन चित्र,दरबार दृश्य आदि
संगीत युक्त (रागमाला) जैसे - दीपक राग, राग हिंडोला, तोड़ी रागनी
विशेषता - चेहरे एक चश्म चेहरे बने।
रेखा - रेखाओं का प्रयोग बहुत कम।( रेखाएं अभिव्यक्तिपूर्ण, अलंकारिक,गतिशील
रंग - टेंपरा पद्धति में आपरदर्शी रंग।
मेवाड़ शैली
माध्यमिका भी कहा जाता था।
प्रमुख केंद्र उदयपुर था ।
प्राचीनतम कृति - सुपासनाहचारियम
चित्रकार - निसारदीन, साहब्दीन , मनोहर
विषय कृष्ण भक्ति ( ढोला मारू, बारहमासा भी।
नेत्र मछली जैसी, मुद्राओं में अकड़न नही ।चटक रंगो का प्रयोग
हाशिए लाल और पीली पट्टी से बनाए जाते थे।
प्राचीनतम कृति - सुपासनाहचारियम
चित्रकार - निसारदीन, साहब्दीन , मनोहर
विषय कृष्ण भक्ति ( ढोला मारू, बारहमासा भी।
नेत्र मछली जैसी, मुद्राओं में अकड़न नही ।चटक रंगो का प्रयोग
हाशिए लाल और पीली पट्टी से बनाए जाते थे।
मारू रागिणी
बूंदी शैली
हाड़ौती (हाड़ा राजाओं की राजधानी
राजा राम सुरजन सिंह के समय उपलब्ध
विषय रागदीपक ,रागिनी, रागमाला, बारहमासा
(आखेट,दरबार,घुड़सवारी के चित्र
विशेषता - रेखाएं कोमल गतिपूर्ण
हासिए - सिंदूरी और पीले रंग में।
नेत्र आम के पत्ते के समान
चेहरे को उभार देने के लिए गहरी छाया का प्रयोग।
राजा राम सुरजन सिंह के समय उपलब्ध
विषय रागदीपक ,रागिनी, रागमाला, बारहमासा
(आखेट,दरबार,घुड़सवारी के चित्र
विशेषता - रेखाएं कोमल गतिपूर्ण
हासिए - सिंदूरी और पीले रंग में।
नेत्र आम के पत्ते के समान
चेहरे को उभार देने के लिए गहरी छाया का प्रयोग।
नेत्र आम के पत्ते के समान
चेहरे को उभार देने के लिए गहरी छाया का प्रयोग।
राजा अनिरुद्ध सिंह हाड़ा
चेहरे को उभार देने के लिए गहरी छाया का प्रयोग।
राजा अनिरुद्ध सिंह हाड़ा
18 vi century
मुगलिया वस्त्र पहने है।
राजा के वस्त्र नारंगी और भूरे रंग के है।मुगलों की तरह घोड़े की लगान बाएं हाथ में और दाहिने हाथ में एक फूल है।
घोड़े को हवा में तेज दौड़ते हुए दिखाए गया है।
Collection netional museum new delhi
मुगलिया वस्त्र पहने है।
राजा के वस्त्र नारंगी और भूरे रंग के है।मुगलों की तरह घोड़े की लगान बाएं हाथ में और दाहिने हाथ में एक फूल है।
घोड़े को हवा में तेज दौड़ते हुए दिखाए गया है।
Collection netional museum new delhi
जोधपुर शैली
राठौड़ शासकों की राजधानी
नेत्र बादाम जैसे , गालों पर लट,आकृतिया लंबी और मुगल शैली से प्रभावित
कृष्ण भक्ति विषय, हसिए लाल रंग में।
डालचन्द्र,उदयराम,किशनदास भाटी,देवदास भाटी,फैजल अली।
चौगान प्लेयर
Water colour on paper
18 th century
Technique tempra
Collection netional museum new delhi
राजकुमारियां और सेविकाएं पोलो खेलते हुए दिखाई गई है।
सभी अपने अपने घोड़े पर सवार है और सभी ने आभूषण पहने हुए है।
सर पर चुनरी नही ढकी हुई । सेविकाओं ने चुनरी ढक रखी है।
18 th century
Technique tempra
Collection netional museum new delhi
राजकुमारियां और सेविकाएं पोलो खेलते हुए दिखाई गई है।
सभी अपने अपने घोड़े पर सवार है और सभी ने आभूषण पहने हुए है।
सर पर चुनरी नही ढकी हुई । सेविकाओं ने चुनरी ढक रखी है।
बीकानेर शैली
स्थापना 1485 में राव जोधा के पुत्र राव बिकाजी ने
भाग पुरान प्रथम रचना
चित्रकार अलीरजा (लक्ष्मीनारायण)
नायिका भेद, बारहमासा, श्रृंगार, शिकार, चोपड़ आदि चित्र बने।
विशेषता - खंजनाकृत
भवनों और गुंबद को विशेष चित्रण, पीले, नीले और सुनहरे रंगो का प्रयोग।
मेघ मालाओं सारस, मिथुन, पारियों के चित्र विशेष रूप से ।
भाग पुरान प्रथम रचना
चित्रकार अलीरजा (लक्ष्मीनारायण)
नायिका भेद, बारहमासा, श्रृंगार, शिकार, चोपड़ आदि चित्र बने।
विशेषता - खंजनाकृत
भवनों और गुंबद को विशेष चित्रण, पीले, नीले और सुनहरे रंगो का प्रयोग।
मेघ मालाओं सारस, मिथुन, पारियों के चित्र विशेष रूप से ।
KRISHNA ON SWING
चित्रकार नूरुद्दीन
2 भागो मे विभाजित है।
ऊपरी हिस्से में कृष्ण घर के अंदर झूला झूल रहे हैं और राधा सामने आसान पर बैठी है।
दूसरे भाग में कृष्ण और राधा सामने सामने बजीचे में बैठे है।और गोपियां उनके मध्य खड़ी है ।
किशनगढ़ शैली
महाराजा किशन सिंह ने 1609 में स्थापना।राजा सावंत सिंह जो नागरी दास के नाम से काव्य रचना करते थे।75 ग्रंथ लिखे।
निहालचंद प्रसिद्ध चित्र कार
' किशनगढ़ पेटिंग' एरिक डिकिंसन ने ललित कला अकादमी नई दिल्ली में प्रकाशित किया।
विशेषता - मानवाकृति लंबी और बारीक, कान तक लंबे नेत्र, धनुषाकार भोहे
पुरुषो की पगड़ी औरंगजेब के समय की।
बनी ठनी
इनकी रचना मोरध्वज निहाल चन्द ने की थी। इसको भारत (राजस्थान) की मोनालिसा भी कहा जाता है। बनी-ठणी तो राजस्थानी शब्द है , इसका हिन्दी में मतलब सजी-धजी होता है। इसे राधा का प्रतीक माना जाता है।दाहिने हाथ की 2 अंगुलियों से ओढ़नी थम रखी है।और बाएं हाथ में डंठल लगी कमल की 2 कालिया है। पर्थम्भूमि गहरे हरे रंग की ।
जयपुर शैली (कछवाहा शैली)
महाराजा सवाई जयसिंह ने 1727 में स्थापनादरबारी चित्र कृष्ण लीला,बारहमासा, रसिक प्रिया,किविप्रिया
विशेषता - मीना कृत आंखे, ऊंचा ललाट,गोल नाक, आकृतिया लंबी और छोटी
हाशिए लाल रंग में
रेखाओं में गति ।
आदमकद चित्र विशेष
Bharat meets rama at chitrakut (भरत मिलाप)
राम के छोटे भाई भरत उन्हे घर ले जाने का प्रयास कर रहे है इसी पल को बेहद खूबसुरती से दर्शाया है।
चित्रकूट में राम की झोपड़ी ,पेड़ पौधे युक्त साधु का एक आदर्श वातावरण ।
- चित्र में 49 मानव आकृतिया है।
- झोपड़ी के पीछे केले के बाग, हरे रंग की झोपड़ी,
- राम को अपने गुरु के पैर छूते, झुकते दिखाया गया है।
- राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली