Dhanraj Bhagat(मूर्तिकार धनराज भगत)


जन्म - 20 दिसम्बर 1917, लाहौर
मृत्यु - 1988
चित्रकार, मूर्तिकार
(इनके मूर्तिशिल्प यथार्थवादी होने के साथ ही धनवाद से भी प्रभावित हैं। इन्होंने पत्थर, काष्ठ, सीमेंट, लकड़ी आदि का प्रयोग करके शिल्प बनाये)

शिक्षा
नेशनल कॉलेज ऑफ आर्ट (मेयो कॉलेज ऑफ आर्ट्स) लाहौर से मूर्ति कला में डिप्लोमा प्राप्त किया।
यही पर अध्यापन कार्य किया।

वह दिल्ली महाविद्यालय में विभागाध्यक्ष भी रहे और यहीं से 1977 सेवानिवृत्त हुए।

उन्होंने मेसी पेपर धातु, काष्ठ, प्रस्तर व सीमेंट धातु, सिरेमिक, आदि माध्यमों से अपने मूर्ति शिल्पों की रचना की

विषय - शुरुआत में उनके विषय और चित्रण दैनिक गतिविधियों में शामिल पुरुष और महिलाएं थे
( बैल को ढालने में लचीलापन पशु की पौरुषता और शक्ति को प्रतिबिंबित करता है)

उनके बाद के वर्षों में, राजाओं और देवताओं की मजबूत छवियां बनाने के लिए सरल ज्यामितीय रूप उनकी शैली बने ।
हालाँकि उन्होंने पेपर-मैसी, एल्युमीनियम, तांबा और पत्थर जैसे कई माध्यमों पर काम किया, लेकिन उनके अधिकांश ज्ञात काम लकड़ी पर हैं और ज्यामितीय आकृतिया विशेषता है।

धनराज भगत दिल्ली शिल्पी चक्र का हिस्सा थे, जो आजादी के समय गठित एक समूह था।( 1949 ) इसमें बी.सी. सान्याल, धनराज भगत, राम कुमार (प्रगतिशील लोगों में से भी), परमजीत सिंह, सतीश गुजराल और रामेश्वर ब्रूटा शामिल थे ।


पुरस्कार
धनराज भगत को 1977 ई. पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
1937 और 1945 में पंजाब फाइन आर्ट्स सोसाइटी, लाहौर द्वारा आयोजित कला प्रतियोगिताओं में प्रथम पुरस्कार।
1947 और 1949 में ऑल इंडिया फाइन आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स सोसाइटी द्वाराआयोजित प्रतियोगिताओं में प्रथम पुरस्कार
1948 और 1949 में दो बार बॉम्बे सोसाइटी पुरस्कार। 1948 में ललित कला अकादमी।
कोलकाता से स्वर्ण पदक।
ललित कला अकादमी, नई दिल्ली ने उन्हें 1961 में अपने राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया और उन्हें साहित्य कला परिषद, दिल्ली से राज्य पुरस्कार मिला।
2010 में राजकीय कला महाविद्यालय, चंडीगढ़ में धनराज भगत स्कल्पचर पार्क की स्थापना हुई।

प्रदर्शनी
✍ भगत ने भारत में आयोजित पहले तीन त्रिवार्षिक
1954 में अखिल भारतीय मूर्तिकला प्रदर्शनी
बॉम्बे आर्ट सोसाइटी
ललित कला अकादमी, कोलकाता
अखिल भारतीय ललित कला और शिल्प सोसायटी ,
नई दिल्ली जैसी दीर्घाओं में आयोजित कई प्रदर्शनियों में भाग लिया .
1946 में उनकी मूर्तियां नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी में प्रदर्शित की गई।


प्रमुख मूर्ति शिल्प
घोड़े की नालबंदी (पत्थर)
द किंग
द किस (लकड़ी)
बांसुरी वादक
सितार वादक (सीमेंट)
कॉस्मिक मैन
शीर्षक हीन घोड़ा
मोनार्क श्रंखला
लाफिंग फिगर
घर की ओर
शिवा नृत्य (प्लास्टर)
स्प्रिट of वर्क
बुल ( टेराकोटा
राजा रानी
पंजाबी दुल्हन
हताशा लकड़ी
जीवन वृक्ष (पेपरमेशी)
चित्रकार के रूप में दृश्य चित्रण किया। इनका ' झोपड़ी' प्रसिद्ध दृश्य चित्र है।


Standing Women - कांस्य


1955- 60 राष्ट्रीय आधुनिक कला संघ्रालय दिल्ली
63.5 से. मि ऊंची
संगीतमय लावण्य को विशिष्ट मुद्रा में प्रदर्शित किया है।


कॉस्मिक मैन
यह मूर्ति शिल्प सीमेंट व प्लास्टर से बनाया गया है। वर्तमान में यह मूर्ति शिल्प ललित कला अकादमी, नई दिल्ली में संग्रहीत है।

इस मूर्ति शिल्प में ज्यामितीय आकार से मानव दिखाया गया है, जिसके ऊपरी भाग में अर्ध चंद्रमा स्थित है; जो यह दर्शाता है कि यह कॉस्मिक मैन अंतरिक्ष मानव है।

शीर्षक हीन (मोनार्क)
इसकी रचना में लकड़ी ताम्र पत्र व कीलों का उपयोग किया गया है। मोनार्क की श्रंखला में (शासक राजा) को जनप्रतिनिधि के रूप में प्रदर्शित किया गया है।

मूर्ति शिल्प को अलंकृत करने में धातु पत्रों व कीलों का प्रयोग किया गया है। लकड़ी में खुदाई कर कुदरापन लिए हुए हैं। यह मूर्ति शिल्प धनराज भगत के निजी संग्रह में सुरक्षित
أحدث أقدم