गुप्त काल


 गुप्तकाल को कला का स्वर्ण काल कहा जाता है

 धर्म -बौद्ध धर्म 

 धार्मिक सहिष्णुता का काल भी कहा जाता है।

 गुप्तकालीन वास्तुकला के प्रमुख उदाहरण -मंदिर ।

  

मंदिरों के प्रकार 

  1. गुहा मंदिर  - पहाड़ों को काटकर

  2. संरचनात्मक - पत्थरों और ईटों  से 


 मंदिर में शिखरों का प्रचलन गुप्त काल से।

 मंदिरों के 5 अंग -जगती, गर्भगृह, मंडप, प्रवेश द्वार, शिखर

✍ गुप्तकाल का भारतीय मंदिर निर्माण में शिखर का पहला उदाहरण - देवगढ़ का दशावतार मंदिर , ललितपुर (U.P)

 स्थापना - श्री गुप्त (महाराजा की उपाधि धारण की)

 275 ई. में 

 घटोत्कच् (श्री गुप्त के पुत्र)

 चंद्र गुप्त प्रथम- गुप्त काल की शुरुवात हुई 

 महाराजाधिराज की उपाधि धारण की

 लिच्छवी वंश(नेपाल) की राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह किया|

 अपनी रानी और स्वय के सयुक्त नाम के सिक्के जारी किए।

 समुद्रगुप्त - भारत का नेपोलियन कहा जाता था।(कविराज की उपाधि से भी जाना जाता था।)

 इनके अभियानों का उल्लेख ऐरन अभिलेख में मिलता है।

 इलाहाबाद स्तंभ शिलालेख (प्रयाग - प्रशस्ति) उनकी उपलब्धियों का विस्तृत विवरण देता है ।

 इस शिलालेख की रचना उनके दरबारी कवि हरिसेन ने संस्कृत में की थी ।

 यह शिलालेख उसी स्तंभ पर खुदा हुआ है जिस पर अशोक का शिलालेख है।

 उनके द्वारा जारी किए गए सिक्को में वीणा के साथ उनका चित्र मिलता है।

 चंद्रगुप्त द्वितीय - विक्रमादितय की उपाधि धारण की।

 इनके दरबार में नवरंत्न थे। (चंद्रगुप्त विक्रमादित्य)

 गुप्त काल को स्वर्ण युग तक ले जाने का श्रेय चंद्रगुप्त विक्रमादित्य को जाता है

 (कालिदास - उन्होंने अभिज्ञानशाकुंतलम लिखा जो यूरोपीय भाषाओं में अनुवादित होने वाला पहला भारतीय कार्य भी है।

 अमरसिम्हा - उनकी कृति अमरकोश संस्कृत जड़ों, समनामों और पर्यायवाची शब्दों की शब्दावली है। इसके तीन भाग हैं जिनमें लगभग दस हजार शब्द हैं और इसे त्रिकंद के नाम से भी जाना जाता है ।

 वराहमिहिर – पुस्तकें-पंच सिद्धांतिका, पांच खगोलीय प्रणालियों की रचना की।

 बृहदसंहिता संस्कृत भाषा में एक महान काम है। यह खगोल विज्ञान, ज्योतिष, भूगोल, वास्तुकला, मौसम, पशु, विवाह और शकुन जैसे विभिन्न विषयों से संबंधित है।

 बृहत् जातक ज्योतिष पर एक मानक कार्य माना जाता है।

 धन्वंतरि – इन्हें आयुर्वेद का जनक माना जाता है।

 घटकारापारा - मूर्तिकला और वास्तुकला के विशेषज्ञ।

 शंकू - एक वास्तुकार जिसने शिल्प शास्त्र लिखा था।

 कहपनक - एक ज्योतिषी जिसने ज्योतिष शास्त्र लिखा ।

 वररुचि - प्राकृत भाषा के प्रथम व्याकरण प्राकृत प्रकाश के रचयिता।

 वेताल भट्ट - मन्त्रशास्त्र के लेखक  और एक जादूगर थे।

 नागा राजकुमारी कुबेरनंगा से विवाह किया।

 विक्रमादित्य और सिंहविक्रम की उपाधि धारण की।

 सोने, चांदी, तांबे के सिक्के जारी किए। उनके सिक्को पर उनका उल्लेख चंद्र के रूप में मिलता है।

 चीनी यात्री फाइयान आया था।

 कुमारगुप्त प्रथम - इन्हे शुक्रदित्य भी कहा जाता था।

 नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की थी ।

 कुमारगुप्त प्रथम को भी सिक्को पर वीणा धारण किए प्रदर्शित किया ।

 उनके शासनकाल के अंत में, मध्य एशिया के हूणों के आक्रमण के कारण उत्तर-पश्चिम सीमा पर शांति कायम नहीं हुई । बैक्ट्रिया पर कब्जा करने के बाद, हूणों ने हिंदुकुश पहाड़ों को पार किया, गांधार पर कब्जा किया और भारत में प्रवेश किया। कुमारगुप्त Ⅰ के शासनकाल के दौरान उनका पहला हमला, राजकुमार स्कंदगुप्त द्वारा असफल कर दिया गया था ।

 कुमारगुप्त 1 के शासनकाल के शिलालेख हैं - करंदंडा, मंदसौर, बिलसाड शिलालेख (उनके शासनकाल का सबसे पुराना अभिलेख)  और दामोदर कॉपर प्लेट शिलालेख।

 स्कंदगुप्त - कुमारगुप्त के पुत्र 

 हूणों के हमले का प्रतिकार किया।

 विष्णु गुप्त - गुप्त वंश का अंतिम शासक 

 गुप्तकाल की मूर्तियां प्रमुखतय मथुरा और सारनाथ केंद्रों से प्राप्त हुई।

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