रोपड
Location - पंजाब (भारत)
रोपड़ की खोज - B.B. लाल ने 1950 ई. में
खुदाई - 1953 - 1955ई. यज्ञदत्त शर्मा ने
नदी - सतलज के बाएं तट पर ( ऋग्वेद में सतलज नदी को शुतुद्रि कहा जाता था)
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सर्वप्रथम खोजा गया हड़प्पा स्थल रोपड़ था।
वस्तुओं के साथ चित्रित धूसर मृदभांड।
तांबे की कुल्हाड़ी के साक्ष्य।
मनुष्य के साथ पालतू कुत्ते को दफनाने के साक्ष्य।
शंख की चूड़ियां, तांबे की अंगूठी , बटखरे।
शवों को अंडाकार गड्ढों में दफनाया जाता था ।
रोपड़ का आधुनिक नाम - रूपनगर
लोथल
खोज -1955 ई. में रंगनाथ राव ने।
भोगवा नदी के तट पर, अहमदाबाद , गुजरात।
लोथल का शाब्दिक अर्थ - मृत मानवो का नगर.
लोथल को लघु हड़प्पा भी कहते हैं।
उपलब्धि - हड़प्पा कालीन बंदरगाह.
बंदरगाह के साक्ष्य, तांबे का हंस, शतरंज के नमूने।
मर्तबान पर पंचतंत्र में वर्णित धूर्त लोमड़ी का अंकन मिला है।
शतरंज के बोर्ड के नमूने
मनके बनाने के कारखाने - लोथल ,चन्हूदरो में.
युग्म समाधिया - लोथल और कालीबंगा में।
पक्के रंग में रंगे पात्र मिले हैं हाथी दांत का पैमाना, पात्रों पर मानव ,पक्षी, सर्प, अनाज की बालें, घास व लताएं ।
लोथल उत्खनन में मृदभांड, उपकरण, मुहरे ,बाट ,माप चावल और धान की भूसी के साक्ष्य ।
युग्मित समाधि के साक्ष्य।
ममी के प्रमाण, फारस की मोहरें।
कंकालों का सिर उत्तर तथा पैर दक्षिण में होते थे।
तबाही का कारण- बाढ़ ।
रंगपुर
खोज - 1953 -1954 ई, ए. रंगनाथ राव के द्वारा
नदी - भादर /सुकभादर
काठियावाड़ अहमदाबाद
कच्ची ईंटों के दुर्ग, नालियां, मृदभांड, बाट पत्थर के फलक ,धान की भूसी के ढेर
चावल, ज्वार, बाजरा के साक्ष्य
चिकने और अलंकृत मर्दभांड जिन पर हिरण और अन्य पशुओं के चित्र बने हुए थे।
धूप में सुखाई गई ईंटे। पौधो के अवशेष।
घरों को चबूतरों पर बनाया जाता था।
आलमगीरपुर
खोज -1958 यज्ञदत्त शर्मा
मेरठ, उत्तर प्रदेश। हिंडन नदी (यमुना की सहायक नदी)के किनारे
हड़प्पा संस्कृति का पूर्वी पुरास्थल है ।
इस स्थान को परसराम -का - खीरा भी कहा जाता हैं ।
रोटी बेलने की चौकी,कटोरे के टुकड़े मिले हैं ।
मिट्टी के बर्तन,मनके और पिंड ।
तांबे से बना एक टूटा हुआ ब्लेंड मिला था |
कालीबंगा
खोज - 1953 अमलानंद घोष।
घग्घर नदी के (प्राचीन सरस्वती)
गंगानगर हनुमानगढ़ (राजस्थान)
अर्थ - काले रंग की चूड़ियां
उत्खनन बी .के. थापर
दीन हीन व गरीबों को
जूते हुए खेत के साक्ष्
घर कच्ची ईंटों से बने हुए थे
अग्निकुंड के साक्ष्य।
सड़कों, नालियों और गलियों को समानुपाती ढंग से बनाया था ।
प्रतीकात्मक समाधान क के साक्ष्य।
9 वयार्षीय बालक की खोपड़ी में 6 छेद मिले हैं।
भूकंप के साक्ष्य
बेलनाकार मोहरे, हल के निशान,हवन कुंड
बनवाली
खोज -1953 -54 में रवींद्र सिंह बिष्ट ने
नदी - सरस्वती
हिसार, हरियाणा
धावन पात्र (wash basin) के साक्ष्य
मिट्टी का हल मिला था
अग्निवेदिकाए ,ठप्पे, बटखरे, गुरिया,चूड़ियां मिली।
नालियों के अवशेष,मनके,तांबे की बानाग्र, चर्ट में फलक मोहरे।
देवी - देवताओं को मूर्ति,नारी मूर्तियां।
जल निकासी प्रणाली का अभाव।
बनवाली की नगर योजना शतरंज या जाल के आकार की बनाई जाती थी।
सड़के न तो सीधी मिलती थी ना एक दूसरे को समकोण पर काटती थी।
धोलावीरा
खोज -1990-91 आर एस विस्ठ
कच्छ का रण , गुजरात
विशालतम हड़प्पा कालीन बस्ती थी।
जलाशयों का नगर कहा जाता था।
सेंधव सभ्यता के सबसे बड़े आकार के लिपि वर्ण मिले थे।
धोलावीरा में दुर्गे का इलाका पश्चिम की वजह दक्षिण में स्थित था ।
नगर योजना समांतर चतुर्भुज /आयताकार थी। सभ्यता के अंतिम चरण में लोग वृताकार मकानों में रहने लगे जिन्हे ' बुंगा' या ' कुम्भा' कहा जाता था।
चूना पत्थर के स्थापत्य नमूनों के अवशेष जिनमे पीली और बैंगनी रंग की धारियां थी।
सूचना पट्ट , जलाशय,स्टेडियम के साक्ष्य।