गोल गुम्बद
बीजापुर, कर्नाटक
मोहमद्द आदिलशाह का मकबरा है।
आदिल शाह की 2 पत्नी - ताज जहां बेगम, आरोस बीबी
इंडो - इस्लामिक वास्तुकला का बेहतरीन नमूना।
वास्तुकार - याबूत दबुल (फारसी वास्तुकार
16 वी.सदी में इसका निर्माण करवाया।(1626-56)
गहरे सलेटी बेसाल्ट का प्रयोग हुआ है।
ऊंचाई - 51 मीटर
संरचना के मूल में 47.5 मीटर का घन, उसके ऊपर 44 मीटर का गुम्बद
घन के चारो कोनो में एक एक गुम्बद नुमा अष्ट कोणीय सप्त-तलीय अट्टालिकाएं मीनार/टावर है इनके अंदर सीढ़िया भी है।
प्रत्येक टॉवर की ऊपरी मंजिल एक गोल गैलरी में खुलती है
मकबरे के अंदर सीढ़ियों से घिरा एक चौकोर चबूतरा।
इस चबूतरे के बीच में एक कब्र का पत्थर है जिसके नीचे कब्र बनी है।
गुंबद को अंग्रेजों ने 'व्हिसपरिंग गैलरी' नाम दिया था, इस गलियारे के एक तरफ फुसफुसा कर या धीरे से बोला गया शब्द भी दूसरी तरफ तक स्पष्ट सुनाई देता है।
और यह आवाज 7 बार सुनाई देती है।
दरवाजों पर सागौन की लकड़ी से किया हुआ महीन नक्काशीदार काम है।
इस इमारत की सबसे बड़ी बॉलकनी को 'च्हमसा' कहा जाता है।
यह अष्टकोणीय इमारत नक्काशी फूल-बूटे, आलों-मेहराबों से सजी हुई है।
इमारत की दीवारों पर पत्तेनुमा और ज्यामितीय आकार उकेरे गए हैं।
व्हिसपरिंग गैलरी में भीतर की दीवारों पर डायमंड कट पैटर्न का काम दिखाई देता है।
गुंबद की बाहरी दीवार पर हर ओर पत्थर की बड़ी पंखुडिय़ां जैसे बनाया गया है।
गोल गुंबद भारत का सबसे बड़ा और विश्र्व का दूसरा सबसे बड़ा गुंबद है।
परिसर के अंदर एक संग्रहालय है जिसे 1892 में स्थापित किया गया था।
स्थापत्य विशेषताओं के कारण इसे दक्खिन वास्तुकला का विजय स्तंभ माना जाता है।