Art during shung period
बौद्ध जैन ब्राह्मण धर्म से संबंधित क्लाकृत्ति।
भाषा - संस्कृत
लिपि - ब्राह्मी
पुष्यमित्र शुंग द्वारा बृहद्रथ की हत्या - 185 ई.पू
वासुदेव कण्व द्वारा देवभूति की हत्या - 73 ईसा पूर्व
छोटी टेराकोटा छवियां, बड़ी पत्थर की मूर्तियां और भरहुत में स्तूप और सांची में प्रसिद्ध महान स्तूप जैसे स्थापत्य स्मारक
पतंजलि के महाभाष्य की रचना इसी काल में हुई थी।
मथुरा , बोध्यगया मूर्ति कला के प्रमुख केंद्र ।
पुष्यमित्र शुंग इस राजवंश के प्रथम शासक थे। पुराणों में पुष्यमित्र शुंग को "सेनानी" कहा गया है। शुंग उज्जैन प्रदेश के थे, जहाँ इनके पूर्वज मौर्यों के प्रधानमंत्री और सैनापति थे।
शुंग साम्राज्य के शासकों की सूची
1. पुष्यमित्र शुंग - 185–149
(बृहद्रथ की हत्या करने के बाद राजवंश की 185 ई.पू स्थापना की।)
पुष्यमित्र शुंग इस राजवंश के प्रथम शासक थे। पुराणों में पुष्यमित्र शुंग को "सेनानी" कहा गया है। शुंग उज्जैन प्रदेश के थे, जहाँ इनके पूर्वज मौर्यों के प्रधानमंत्री और सैनापति थे।
शुंग साम्राज्य के शासकों की सूची
1. पुष्यमित्र शुंग - 185–149
(बृहद्रथ की हत्या करने के बाद राजवंश की 185 ई.पू स्थापना की।)
2. अग्निमित्र शुंग - 149–141
( पुष्यमित्र का पुत्र और एक महान विजेता।)
3.वसुज्येष्ठ शुंग --141–131
( अग्निमित्र का पुत्र और एक महान विजेता)
4.सम्राट वसुमित्र शुंग --131–124
(अग्निमित्र का पुत्र)
5.अन्ध्रक शुंग - 124–122
6.पुलिन्दक शुंग--122–119
7. घोष शुंग -119–108
8.वज्रमित्र शुंग--108–94
9. भगभद्र शुंग-- 94–83
10. देवभूति शुंग- 83–73
(शुंग सम्राटों में अंतिम देवभूति थे।उनके मंत्री वासुदेव कण्व ने उनकी हत्या कर दी थी और कहा जाता था कि वह विलासी शासक थे।
शुंग वंश का स्थान कण्वों ने ले लिया। कण्व राजवंश 73 ईसा पूर्व के आसपास शुंगों का उत्तराधिकारी बना।)
इन्हें ईट और पत्थर की शिलाओं से ढका जाता था।
सांची
सांची एक बौद्ध परिसर है।
वास्तुशिल्पीय शैली
बौद्ध , मौर्य
इसके केन्द्र में एक अर्धगोलाकार ईंट निर्मित ढांचा था, जिसमें भगवान बुद्ध के कुछ अवशेष रखे थे। इसके शिखर पर स्मारक को दिये गये ऊंचे सम्मान का प्रतीक रूपी एक छत्र था। इसका निर्माण कार्य सम्राट अशोक की पत्नी महादेवी सक्यकुमारी को सौपा था।
निर्माण - तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व , अशोक द्वारा
खोज - जनरल टेलर ने
लाल बलुआ पत्थर से निर्मित
250 ft ऊंची पहाड़ी पर स्थित
ऊंचाई 16.46 मीटर (54.0 फीट) (महान स्तूप का गुंबद)
DIMENSIONS (व्यास) 36.6 मीटर (120 फीट) (महान स्तूप का गुंबद)
है।
इसमें 3 स्तूप है । बीच वाला सबसे बड़ा। जिसे महास्तूप भी कहते है।
2 छोटे स्तूप
मौर्य काल में ईंटो का बना ।शुंग काल में पत्थर और लकड़ी के तोरण द्वार लगाए।
इसमें प्रदक्षिणा,वेदिका और अलंकृत तोरण द्वार है।
शैली
तोरण पर भगवान बुद्ध के जीवन संबंधी दृश्य और पूर्व जन्म की कथाओं का अंकन किया गया है जो की उभरी हुई प्रतिमाओं के रूप में है।
सांची के तोरण में भगवान बुद्ध की मूर्तियों का अंकन कहीं भी नहीं है लेकिन उनकी जातक कथाओं का अंकन देखने को मिलता है। बुद्ध के स्थान पर उनके प्रतीक चिन्ह का अंकन किया गया है जैसे, चरण चिन्ह कमल, पुष्प ,छत्र,बोधीवृक्ष आदि।
हीनयान से सम्बन्धित
अन्य - त्रिभंगी आकृति में यक्षि
स्तूप 1
स्तूप को ऊपर से चपटा कर दिया है और उसके ऊपर ताज लगा दिया है।जिसे धर्म का प्रतीक माना गया हैं।
कोई अलंकरण नही है।
stup 2
स्तूप 3
दक्षिण तोरण शेष है । जिसमे बड़ेरिया बने हैं इसमें बौने,सिंह, हाथी उत्कीर्ण है। मुख्य और सबसे पुराना प्रवेश द्वार माना जाता है।
एकाशम पत्थर से निर्मित ।ऊपर पशु आकृति।
फहयान ने 6 स्तम्भ का वर्णन किया है।
पुरातत्वविद् जॉन मार्शल के अनुसार, शुंग शासन के समय तक्षशिला में बौद्ध प्रतिष्ठानों को कुछ क्षति होने के प्रमाण मिले हैं।
हिया बौद्ध धर्म में धर्मचक्र (धम्म/धर्म का पहिया) का प्रतिनिधित्व करता है। हर पहिये के बीच जानवरों की नक्काशी है। वे एक बैल, एक घोड़ा, एक हाथी और एक शेर हैं। जानवर ऐसे प्रतीत होते हैं मानो वे गति कर रहे हों।
प्रश्न 7 हर्मिका का क्या अर्थ होता है?
हिया बौद्ध धर्म में धर्मचक्र (धम्म/धर्म का पहिया) का प्रतिनिधित्व करता है। हर पहिये के बीच जानवरों की नक्काशी है। वे एक बैल, एक घोड़ा, एक हाथी और एक शेर हैं। जानवर ऐसे प्रतीत होते हैं मानो वे गति कर रहे हों।
प्रश्न 7 हर्मिका का क्या अर्थ होता है?
उत्तर देवताओं का निवास स्थान
प्रश्न 8 स्तूप की आकृति कैसी होती है?
उत्तर उल्टे कटोरे के समान
प्रश्न 9 सांची की कला को किसके समान माना गया है?
उत्तर लोक कला के समान माना गया है
प्रश्न 10 सांची स्तूप को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल कब घोषित किया गया था?
उत्तर 1989 में
प्रश्न 11 "सांची की कला में आध्यात्मिकता ओट और मौलिकता एक हो गई है" कथन किसका था?
उत्तर जॉन इरविन का
प्र्शन १२ साँची स्तूप किस नदी के किनारे है ?
उतर - सांची स्तूप चंबल नदी के घाट में स्थित है
प्र्शन १३ साँची को प्राचीन काल में किस नाम से जानते है ?
उतर सांची को प्राचीन काल में काकनम, काकनाया, काकनवा, काकनादबोटा और बोटा-श्रीपर्वत के नाम से जाना जाता था
प्रश्न १४ साँची स्तूप की खोज कब और किसने की थी ?
उतर 1818 में जनरल टेलर द्वारा इसकी खोज की गई