अपभ्रंश शैली


☞ अन्य नाम - गुजरात शैली, जैन शैली, पुस्तक  शैली, सुलिपि शैली, पश्चिमी भारतीय शैली, ग्रामीण और ग्रामीण शैली के नाम से भी पुकारा गया  

☞ राय कृष्णदास जी ने "अपभ्रंश शैली" नाम दिया

☞ गुजरात शैली कहा- एन सी मेहता ने

☞ यह शैली अपनी मूल विशेषताओं को खो चुकी है और अजंता का भ्रष्ट रूप प्रतीत होती है।

☞ प्रमुख केंद्र- गुजरात, राजस्थान, मांडू, मालवा, जौनपुर

☞ धर्म:- जैन धर्म

    चित्र 

☞ ताड़पत्र पर बने पोथी चित्र

☞ कागज पर बने चित्र(फुटकर चित्र)

☞ कपड़े पर बने पट चित्र

☞ वेरुल के भित्ति चित्रों को अपभ्रंश शैली का उत्कृष्ट नमूना माना जाता है इनका निर्माण उदयादित्य ने 1059  1070 में करवाया।

☞ ग्रंथ चित्र  बालगोपाल स्तुति,गीत गोविंद,दुर्गा सप्तशती,रतिरहस्य ,कल्पसूत्र मार्कंडेय पुराण.

☞ अहमदाबाद के श्री साराभाई माणिकलाल ने"कल्पसूत्र/चित्रकल्पद्रुम नामक ग्रंथ प्रकाशित किया ।

☞ लिपि काल  1465 ई.

☞ पहली प्रति :- एशियाटिक सोसायटी मुंबई में

☞ दूसरी प्रति :- लिमडी के सेठ आनंद जी कल्याण जी के पास ,1415

तीसरी प्रति :- जौनपुर की जो कि स्वर्ण अक्षरों में लिखी गई है(वर्तमान में बड़ौदा के नरसिंह जी की पोल के ज्ञान मंदिर में सुरक्षित है। 1467 में जौनपुर के बादशाह हुसैन शाह शर्की के शासनकाल में चित्रित की गई।

चौथी प्रति :- अहमदाबाद निवासी  मुनि  दयाविजय जी के संग्रह में सुरक्षित  15 वी शताब्दी के उत्तरार्ध में।

बालगोपाल स्तुति :- बोस्टन संग्रहालय में कागज पर लिखी हुई

☞ गुजरात के श्री भोगालालजी के संग्रह में सुरक्षित दुर्गासप्तशती :- मंजूलाल मजूमदार के निजी पुस्तकालय  में प्राप्त।

          * अपभ्रंश शैली की विशेषता *

☞ मानवाकृति के चेहरे सवा चश्म

☞ नाक अधिक लंबी, नुकीले पतले गाल, परवल नेत्र सीमा रेखा से बाहर निकले हुए।

☞ अपभ्रंश शैली की मानव आकृति रूई के गड्ढों या गुजरात की कठपुतलियों के समान प्रतीत होती हैं। पशु- पक्षियों की आकृति खिलौनों की तरह

☞ मुद्राओं में अकड़न, सीमा रेखाएं काली स्याही से बनाई गई।

☞ चित्रों में अधिकांश चमकदार, उष्ण रंगों का प्रयोग।

☞ पृष्ठभूमि में अधिकतर लाल रंग को सपाट रूप से भरा जाता था।

☞ ग्रुप से उभरा हुआ सीना

☞ प्रकृति का आलेखन अलंकारिक रूप में हुआ। तीर्थंकरों की आकृति में भिन्न-भिन्न रंगों का प्रयोग  जैसे :- 

↠ महावीर - पीला 

↠ पार्श्वनाथ - नीला 

↠ नेमिनाथ - काला

↠ ऋषभनाथ - स्वर्णिम वर्ण 

☞ भारत में आरंभिक पुस्तक चित्रण की परंपरा मुख्यतः अपभ्रंश शैली से जुड़ी हुई है।

              जैन शैली 

☞ अन्य नाम :- गुज्जर कला- पर्सी ब्राउन ने 

☞ बिहार शैली  

☞ जैन शैली को गुजरात शैली नाम दिया एनसी मेहता ने

☞ रेखाएं :- ज्यामितीय और कोणात्मक

☞ ग्रंथ:- जैन शैली के चित्र ग्रंथों में सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ- कल्पसूत्र

☞ ताड़ पत्र पर अंकित, तीर्थंकरों की कहानियां।

☞ श्वेतांबर जैन संप्रदाय का निशीधचूर्ण ग्रंथ, रचनाकाल 1100 ई. ताल पत्र पर अंकित।

☞ बसंतविलास, कलिकाचार्य, पंच जैन तीर्थंकर, अंगसूत्र,  श्रावकप्रतिक्रमणचूर्णी, नेमीनाथ चरित्र

☞ सृष्टिशलाकापुरुष चरित्र, दशवकालिक लघुवर्ती,  कथारत्न सागर,  उत्तरा अध्यनसूत्र।

☞ पीले रंग की प्रधानता।

☞ कल्पसूत्र को प्राचीन प्रति मांडू/ मालवा से मिली 1439 ई में ।

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