गुप्त काल
गुप्त साम्राज्य तीसरी शताब्दी - छठी शताब्दी (275–550 इस्वी)श्री गुप्त गुप्त वंश के संस्थापक थे। चंद्रगुप्त प्रथम को व्यापक रूप से गुप्त युग के संस्थापक के रूप में जाना जाता है।
गुप्त वंश के सम्राट :-
- श्रीगुप्त
- घटोत्कच
- चंद्रगुप्त प्रथम
- समुद्रगुप्त
- रामगुप्त
- चंद्रगुप्त द्वितीय ( विक्रमादित्य)
- कुमारगुप्त प्रथम (महेंद्रादित्य)
- स्कंदगुप्त
- पुरुगुप्त
- कुमारगुप्त द्वितीय
- बुद्धगुप्त
- नरसिंहगुप्त बालादित्य
- कुमारगुप्त तृतीय
- विष्णुगुप्त
भाषा - संस्कृत , प्राकृत
गुप्तकाल चित्रकला का स्वर्ण युग था।
इस काल की वास्तुकृतियों में मंदिर निर्माण का ऐतिहासिक महत्त्व है। बड़ी संख्या में मूर्तियों तथा मंदिरों का निर्माण हुआ जिसमें ईंटों के स्थान पर पत्थरों का प्रयोग किया गया। इस काल की वास्तुकला को सात भागों में बाँटा जा सकता है- राजप्रासाद, आवासीय गृह, गुहाएँ, मन्दिर, स्तूप, विहार तथा स्तम्भ।
गुप्त काल की मूर्तिया अधिकतम मथुरा और सारनाथ केंद्रों से प्राप्त हुई।
बौद्ध के साथ जैन प्रतिमाएं भी बनी। जैन तीर्थकर के वक्ष स्थल पर 'श्री वत्स ' लिखा होता था और शरीर नग्न रूप में दिखाया जाता था।
गुप्तकालीन मूर्ति शिल्प
चीनी यात्री फाह्यान ने अपने विवरण में गुप्त नरेशों के राजप्रासाद की बहुत प्रशंसा की है। इस समय के घरों में कई कमरे, दालान तथा आँगन होते थे। छत पर जाने के लिए सीढ़ियाँ होती थीं जिन्हें सोपान कहा जाता था। प्रकाश के लिए रोशनदान बनाये जाते थे जिन्हें वातायन कहा जाता था। गुप्तकाल में ब्राह्मण धर्म के प्राचीनतम गुहा मंदिर निर्मित हुए।
ये भिलसा (मध्य-प्रदेश) के समीप उदयगिरि की पहाड़ियों में स्थित हैं। ये गुहाएँ चट्टानें काटकर निर्मित हुई थीं। उदयगिरि के अतिरिक्त अजन्ता, एलोरा, औरंगाबाद और बाघ की कुछ गुफाएँ गुप्तकालीन हैं। इस काल में मंदिरों का निर्माण ऊँचे चबूतरों पर हुआ। शुरू में मंदिरों की छतें चपटी होती थीं बाद में शिखरों का निर्माण हुआ। मंदिरों में सिंह मुख, पुष्पपत्र, गंगायमुना की मूर्तियाँ, झरोखे आदि के कारण मंदिरों में अद्भुत आकर्षण है।
गुप्तकाल में मूर्तिकला के प्रमुख केन्द्र मथुरा, सारनाथ और पाटिलपुत्र थे। गुप्तकालीन मूर्तिकला की विशेषताएँ हैं कि इन मूर्तियों में भद्रता तथा शालीनता, सरलता, आध्यात्मिकता के भावों की अभिव्यक्ति, अनुपातशीलता आदि गुणों के कारण ये मूर्तियाँ बड़ी स्वाभाविक हैं। जिसमें मूर्ति का आकार गात, केशराशि, माँसपेशियाँ, चेहरे की बनावट, प्रभामण्डल, मुद्रा, स्वाभाविकता आदि तत्त्वों को ध्यान में रखकर मूर्ति का निर्माण किया जाता था। यह भारतीय एवं राष्ट्रीय शैली थी।
इस काल में निर्मित बुद्ध-मूर्तियाँ पाँच मुद्राओं में मिलती हैं
गुप्तकाल में मूर्तिकला के प्रमुख केन्द्र मथुरा, सारनाथ और पाटिलपुत्र थे। गुप्तकालीन मूर्तिकला की विशेषताएँ हैं कि इन मूर्तियों में भद्रता तथा शालीनता, सरलता, आध्यात्मिकता के भावों की अभिव्यक्ति, अनुपातशीलता आदि गुणों के कारण ये मूर्तियाँ बड़ी स्वाभाविक हैं। जिसमें मूर्ति का आकार गात, केशराशि, माँसपेशियाँ, चेहरे की बनावट, प्रभामण्डल, मुद्रा, स्वाभाविकता आदि तत्त्वों को ध्यान में रखकर मूर्ति का निर्माण किया जाता था। यह भारतीय एवं राष्ट्रीय शैली थी।
इस काल में निर्मित बुद्ध-मूर्तियाँ पाँच मुद्राओं में मिलती हैं
- ध्यान मुद्रा
- भूमिस्पर्श मुद्रा
- अभय मुद्रा
- वरद मुद्रा
- धर्मचक्र मुद्रा
कालिदास की रचनाओं में चित्रकला के विषय के अनेक प्रसंग हैं।
मेघदूत में यक्ष-पत्नी के द्वारा यक्ष के भावगम्य चित्र का उल्लेख है।
नालंदा विश्वविद्यालय का निर्माण गुप्त राजा कुमारगुप्ता द्वारा किया गया था नालंदा को दुनिया का पहला अंतरराष्ट्रीय निवासी विश्वविद्यालय माना जाता है।
इस काल के प्रमुख मंदिर हैं
तिगवा का विष्णु मंदिर (जबलपुर, मध्य प्रदेश)
- शिव को समर्पित 5वीं या 6ठी शताब्दी का गुप्त युग का हिंदू पत्थर मंदिर
- शिव , कार्तिकेय, गणेश, सूर्य, ब्रह्मा, काम, दुर्गा
- भूमरा , भूभरा या भरकुलेश्वर भी कहा जाता है,
- मंदिर में एक गर्भगृह और मंडप के साथ एक वर्गाकार योजना है।
- इसमें एक प्रदक्षिणा-पथ (परिक्रमा पथ) शामिल है। इसमें गंगा और यमुना देवी से घिरा गर्भगृह का एक सजाया हुआ प्रवेश द्वार और जटिल नक्काशीदार मूर्तियां शामिल हैं।
नचना कुठार का पार्वती मंदिर (मध्य प्रदेश)
- इसे नाचना-कुठारा में नाचना मंदिर या हिंदू मंदिर भी कहा जाता है ।
- चतुर्मुख मंदिर 9वीं शताब्दी का है।
- शिव , पार्वती , दुर्गा , विष्णु
- शैली - नागर
- 5वीं या 6ठी शताब्दी
देवगढ़ का दशवतार मंदिर (झाँसी, उत्तर प्रदेश)
- भगवान विष्णु को समर्पित है।
- 5th century, पश्चिम मुखी मंदिर
- शैली - नागर
- मंदिर के बाएं द्वार पर गंगा और दांए द्वार पर यमुना देवियों की नक्काशी की गयी है।
- गंगा - मकर
- यमुना - कछुआ
- पट्टी पर वैष्णव पौराणिक कथाओं की नक्काशी भी की गयी
भीतरगाँव का लक्ष्मण मंदिर (कानपुर, उत्तर प्रदेश)
- कानपुर (उत्तर प्रदेश) के भीतरगाँव में स्थित मंदिर ईंट से निर्मित सबसे पुराने मंदिरों में से एक है।
- नागर शैली
- निर्माण - 5वीं शताब्दी A.D. में
- इसे सबसे प्राचीन हिन्दू पवित्र स्थान माना जाता है जिसमें ऊँची छत और शिखर है
- मंदिर की दीवारें शिव, पार्वती, गणेश, विष्णु आदि देवी- देवताओं की टेराकोटा मूर्तियों से सजाई गई हैं।
- कनिंघम के अनुसार, मंदिर के पीछे वाराह अवतार की मूर्ति की वज़ह से यह अनुमान लगाया जाता है कि शायद यह एक विष्णु था।
पतन के कारण
गुप्तवंश के पतन का कारण पारिवारिक अंतरिम कलह और बार-बार होने वाले विदेशी आक्रमण माने जाते हैं। जिनमें हूणों द्वारा आक्रमण को मुख्य कारण माना जाता है। सन् 550 में इस साम्राज्य का अंत हुआ
प्रश्न :- किस गुप्त शासक को आशोकादित्त के नाम से जाना जाता था।
उत्तर :- समुंद्रगुप्त
प्रश्न :- किस गुप्त शासक ने अश्वमेघ यज्ञ किया था?
उत्तर :- समुंद्र गुप्त
प्रश्न :- गुप्त काल को स्वर्ण युग तक ले जाने का श्रेय किस गुप्त शासक को जाता है?
उत्तर :- चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य को