कुषाण काल
मध्य एशिया, उतरी भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान
राजधानी- पेशावर ( पुरुषपुरा ) ,तक्षशिला , मथुरा
भाषाएँ - ग्रीक ,बैक्ट्रियन ,संस्कृत
धर्म - हिंदू ,बौद्ध, बैक्ट्रियन,पारसी धर्म
कुषाण सम्राट अग्नि के उपासक थे।
कुषाण वंश के संस्थापक कुजुल कडफिसेस थे । कुछ इतिहासकार इस वंश को चीन से आए युची या युएझ़ी लोगों के मूल का मानते हैं। कुषाण मध्य एशिया और चीन में बौद्ध धर्म के प्रसार , महायान बौद्ध धर्म के प्रसार में सहायक थे। इरान में सासनियन वंश और उतरी भारत में स्थानीय शक्तियों का उदय हुआ। गांधार प्रदेश की कला को कुषाण कालीन कला या गांधार कला के नाम से जानते है।
सम्राट कनिष्क (72- 101 AD)
महायान बौद्ध धर्म के अनुयायी
राजधानी - पेशावर (पुरुषपुर) गाँधार प्रान्तभारत में आकर यहां की बौद्ध संस्कृति का हिस्सा बन गए भारत में सर्वप्रथम भगवान बुद्ध की मूर्तियों का निर्माण कुषाण काल में ही हुआ इसमें गंधार व मथुरा शिल्पकला का उदय कुषाण काल में ही हुआ।
कनिष्क ने राजगद्दी 78 ई.पू में प्राप्त की एवं तभी इस वर्ष को शक संवत् के आरम्भ की तिथि माना जाता था। गांधार कला की विषय-वस्तु भारतीय थी, परन्तु कला शैली यूनानी और रोमन थी। इसलिए गांधार कला को ग्रीको-रोमन, ग्रीको बुद्धिस्ट या हिन्दू-यूनानी कला भी कहा जाता है। इसके प्रमुख केन्द्र जलालाबाद, हड्डा, बामियान, स्वात घाटी और पेशावर थे। इस कला में पहली बार बुद्ध की सुन्दर मूर्तियाँ बनायी गयीं।
कुषाण कला की विशेषताएँ
- विविध रुपों में मानव का सफल चित्रण।
- मूर्तियों के अंकन में परिष्कार।
- लम्बी कथाओं के अंकन में नवीनताएँ।
- प्राचीन और नवीन अभिप्रायों की मधुर मिलावट।
- गांधार कला का प्रभाव।
- व्यक्ति विशेष की मूर्तियों का निर्माण
गांधार शैली
महायान सम्प्रदाय समय पहली शती ईस्वी से चौथी शती ईस्वी के मध्य का है।
गांधार कला एक प्रसिद्ध प्राचीन भारतीय कला है। इस कला का उल्लेख वैदिक तथा बाद के संस्कृत साहित्य में मिलता है।
गांधार कला की विषय-वस्तु भारतीय थी, परन्तु कला शैली यूनानी और रोमन थी। इसलिए गांधार कला को ग्रीको-रोमन, ग्रीको बुद्धिस्ट या हिन्दू-यूनानी कला भी कहा जाता है।
प्रमुख केन्द्र जलालाबाद, हड्डा, बामियान, स्वात घाटी और पेशावर थे। इस कला में पहली बार बुद्ध की सुन्दर मूर्तियाँ बनायी गयीं।इनके निर्माण में सफेद और काले रंग के पत्थर का व्यवहार किया गया।
विशेषता - इसकी मूर्तियों में मांसपेशियाँ स्पष्ट झलकती हैं और आकर्षक वस्त्रों की सलवटें साफ दिखाई देती हैं। इस शैली के शिल्पियों द्वारा वास्तविकता पर कम ध्यान देते हुए बाह्य सौन्दर्य को मूर्तरूप देने का प्रयास किया गया। इसकी मूर्तियों में भगवान बुद्ध यूनानी देवता अपोलो के समान प्रतीत होते हैं।
इस शैली में उच्चकोटि की नक्काशी का प्रयोग करते हुए प्रेम, करुणा, वात्सल्य आदि विभिन्न भावनाओं एवं अलंकारिता का सुन्दर सम्मिश्रण प्रस्तुत किया गया है। इस शैली में आभूषण का प्रदर्शन अधिक किया गया है। इसमें सिर के बाल पीछे की ओर मोड़ कर एक जूड़ा बना दिया गया है जिससे मूर्तियाँ भव्य एवं सजीव लगती है। कनिष्क के काल में गांधार कला का विकास बड़ी तेजी से हुआ।
यहां की मूर्तियां भारतीय होने पर भी सजावट, वेशभूषा, श्रंगार, केश विन्यास यूनानी होते है। जैसे-- साधनामग्न बुद्ध की नासिका उठी हुई और घुंघराले केश है। ऐसी मूर्तियों को गांधार शैली की मूर्तियां कहा जाता है।
मूर्तियों, प्रतीक-चिन्ह, सुडौलता, विशालता, भव्यता, रंजकता सौन्दर्य की प्रमुखता होने लगी थी।
बुद्ध, बोधिसत्व, अवलोकितेश्वर, मंजुश्री, यक्ष, कुबेर की मूर्तियां इसी शैली मे बनाई गई थी। इनके साथ वृक्ष, पशु, धर्म चक्र, आदि के भी अंकण गांधार शैली मे होते थे।
तीसरी शती ई०पू० से बारहवीं शती ई०
कुषाण राजाओं के संरक्षण में विकसित हुई यह शैली। बौद्ध,जैन, वैष्णव धर्म से सम्बन्धित शिल्प बनाए गए।
यहां की मूर्तियां भारतीय होने पर भी सजावट, वेशभूषा, श्रंगार, केश विन्यास यूनानी होते है। जैसे-- साधनामग्न बुद्ध की नासिका उठी हुई और घुंघराले केश है। ऐसी मूर्तियों को गांधार शैली की मूर्तियां कहा जाता है।
मूर्तियों, प्रतीक-चिन्ह, सुडौलता, विशालता, भव्यता, रंजकता सौन्दर्य की प्रमुखता होने लगी थी।
बुद्ध, बोधिसत्व, अवलोकितेश्वर, मंजुश्री, यक्ष, कुबेर की मूर्तियां इसी शैली मे बनाई गई थी। इनके साथ वृक्ष, पशु, धर्म चक्र, आदि के भी अंकण गांधार शैली मे होते थे।
मथुरा शैली
कुषाण राजाओं के संरक्षण में विकसित हुई यह शैली। बौद्ध,जैन, वैष्णव धर्म से सम्बन्धित शिल्प बनाए गए।
भारतीय मूर्ति शिल्प के इतिहास में मथुरा का स्थान महत्त्वपूर्ण है। कुषाण काल से मथुरा विद्यालय कला क्षेत्र के उच्चतम शिखर पर था। सबसे विशिष्ट कार्य जो इस काल के दौरान किया गया वह बुद्ध का सुनिचित मानक प्रतीक था। मथुरा के कलाकार गंधार कला में निर्मित बुद्ध के चित्रों से प्रभावित थे।
लगभग तीसरी शती के अन्त तक यक्ष और यक्षियों की प्रस्तर मूर्तियाँ उपलब्ध होने लगती है। मथुरा में लाल रंग के बलुआ पत्थरों से बुद्ध और बोद्धिसत्व की मूर्तियाँ के साथ साथ महावीर की मूर्तियाँ भी बनीं। मथुरा कला में अनेक बेदिकास्तम्भ भी बनाये गये। यक्ष यक्षिणियों और धन के देवता कुबेर की मूर्तियाँ भी मथुरा से मिली हैं। इसका उदाहरण मथुरा से कनिष्क की बिना सिर की एक खड़ी प्रतिमा है।
मथुरा शैली की सबसे सुन्दर मूर्तियाँ पक्षियों की हैं जो एक स्तूप की वेष्टणी पर खुदी खुई थी। इन मूर्तियों की कामुकतापूर्ण भावभंगिमा सिन्धु में उपलब्ध नर्तकी की प्रतिमा से बहुत कुछ मिलती जुलती है।
मथुरा के शिल्पियों ने वेदिका स्तंभ की पक्षी मूर्तिया को उद्यान क्रीड़ा,जल क्रीड़ा, वीणा वादन, श्रृंगार, वेणी श्रृंगार आदि विषयों से सुसज्जित किया।
गांधार शैली के विकास के दो चरण
- पत्थर निर्मित मूर्तिकला का चरण
- महीन प्लास्टर निर्मित कला का चरण(चौथी शताब्दी में भी अनवरत रहा)
प्रश्न :- द्वितीय अशोक किस शासक को कहा जाता था?
उत्तर :- कनिष्क को।
प्रश्न :- सहरी बहलोल से प्राप्त बुद्ध की मूर्ति किस शैली से संबंधित है?
उत्तर :- गांधार
प्रश्न :- मथुरा शैली के प्रभामंडल अधिकांशत कैसे बने थे?
उत्तर :- सादा
प्रश्न :- गांधार शैली किसके आक्रमण से नष्ट हो गई थी?
उत्तर :- हुनो
प्रश्न :- मथुरा शैली की प्रसाधिका की मूर्ति में प्रधानता है?
उत्तर :- श्रृंगार
प्रश्न :- गांधार शैली के संयोजनो पर किसका प्रभाव माना जाता है?
उत्तर :- सांची का
प्रश्न :- मयूर की आकृति किस अशोक के किस अभिलेख में है?
उत्तर :- इलाहाबाद अभिलेख में।
प्रश्न :- सांची ,भरहुत,,अमरावती के विषय किस शैली से मिलते जुलते है?
उत्तर :- गांधार शैली से
प्रश्न :- गांधार को यूनानी बौद्ध कला नाम किसने दिया था?
उत्तर :- चार्ल्स फाबरो ने
प्रश्न :- मथुरा और गांधार किस काल की मूर्तिकला के केंद्र थे?
उत्तर :- कुषाण काल
प्रश्न :- जैन, वष्णव, बौद्ध सभी धर्मो के शिल्प किस शैली में मिलते है?
उत्तर :- मथुरा शैली
प्रश्न :- पहली शताब्दी कनिष्क के पुतले में किसका प्रभाव देखा जा सकता है?
उत्तर :- मंगोलियन