indo islamic architecture
पर्शियन + इंडियन शैली/ भारतीय इस्लामी वास्तुकला
* 13 वी.से 17 वी. शताब्दी
* मध्यकालीन भारत - दिल्ली सल्तनत,मुगल सल्तनत
दिल्ली सल्तनत - 5 राजवंश (गुलाम -खिलजी -तुगलक - सैय्यद - लोदी)
* इस काल में इस्लाम धर्म के अनुयाइयों द्वारा आवश्यकता अनुसार मकबरों और मस्जिदों का निर्माण करवाया।
*मुस्लिम सत्ता की स्थापना के साथ ही वास्तु कला के क्षेत्र में भी मुस्लिम वैज्ञानिक एवं तकनीकी पद्धति का प्रयोग प्रारंभ हुआ।
*पर्सी ब्राउन ने इसे indo-islamic ( भारतीय - इस्लामी) नाम दिया.
*विंसेंट स्मिथ ने इसे इंडियन- मुस्लिम(भारतीय मुस्लिम कला) नाम दिया।
*मुस्लिम स्थापत्य के प्रमुख अंग -मीनार,मस्जिद, मकबरे आदि।
*इस्लामी भवन निर्माण को दो श्रेणी में बांटा गया है
*धार्मिक- मुस्लिम धर्म में सामूहिक प्रार्थना स्थल को मस्जिद कहते है। मस्जिदों में मक्का की दिशा में नमाज पढ़ने के लिए बड़ी आयताकार जगह जिसे मीनार कहा जाता है।
*रिक्त स्थानों को भरने और छत को आधार देने के लिए मेहराबो का प्रयोग।
* मुगल काल में मेहराबो पर विभिन्न अलंकरण/डिजाइन बनाए जाते थे।
संत - फकीरों के मकबरों को ' दरगाह ' कहा जाता है।
गुम्बद के नीचे का महत्वपूर्ण कक्ष ' हुजराह 'कहलाता है।
भवन के नीचे तहखान जिसमे कब्र होती है।
*गैर धार्मिक - इस्लामी शासकों ने राज्य की रक्षा के लिए किलो, दीवारों आदि का निर्माण करवाया
*दिल्ली की कुतुबमीनार भारत किन्ही नही बल्कि विश्व की अनोखी वास्तु रचना है।
इस्लामी वास्तुकला की विशेषता -
*गुम्बद का प्रयोग(हिंदू शैली में शिखराकार ओर नुकीली छत का प्रयोग)
*गुम्बदकिय कक्ष की पश्चिमी दीवार पर मेहराब बनी रहती थी।
*मुगल काल में भव्य मकबरों का निर्माण हुआ।
*ज्यामितीय आकारों का भी प्रयोग हुआ।
*भवनों में जाली का भी कार्य हुआ।
*चारबाग शैली का भी प्रारंभ हुआ। जैसे ताजमहल
*मोजेक डिजाइन - एक ही आकर को बिना ओवरलैप और gap के repeat किया जाता था।